भोर.. (हिंदी कविता)

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भोर...
(उन सभी माताओ को समर्पित जिन्होने इस बंजर मन
की भुमी में संस्कारो के बिज बोये थे..)
कल की भोर आज मुँह फेरे हुऎं है...
उजालो में भी अंधेरो के सांये मिले हुऎ है..!!
कल तक कान्हा के मुरली के स्वर..
कल तक मिरा की मधुर आलाप...
कल तक कबिरदास के दोहे... और..,